स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय संक्षेप में
नाम | स्वामी विवेकानंद [स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय] |
पूरा नाम (संन्यास लेने के पूर्व) | नरेंद्रनाथ दत्त |
जन्म | 12 जनवरी, 1863 |
मृत्यु | 4 जुलाई, 1902 (39 वर्ष) |
पिता का नाम | श्री विश्वनाथ दत्त (वकील) |
माता का नाम | श्रीमती भुवनेश्वरी देवी |
जन्म स्थान | गौड़ मोहन मुखर्जी स्ट्रीट, कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
मृत्यु स्थान | बेलूर मठ, कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
गुरु/शिक्षक | श्री रामकृष्ण परमहंस |
संस्थापक | रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन (बेलूर मठ) |
साहित्यिक कार्य | राजयोग, कर्मयोग, भक्तियोग, मेरे गुरु |
अन्य मह्त्वपूर्ण कार्य | न्यूयार्क में वेदांत सिटी की स्थापना, कैलिफोर्निया में शांति आश्रम की स्थापना |
किताब | राज योग (पुस्तक) |
चर्चित कथन | “उठो, जागो और तब तक न रुको! जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।” |
दर्शन | आधुनिक वेदांत, राजयोग। |
स्वामी विवेकानंद का जीवन आध्यात्म और ज्ञान से परिपूर्ण था। इन्होंने अपने आध्यात्मिक व वेदांत ज्ञान का प्रचार पूरे विश्व में किया था। स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। ये मूल रूप से कलकत्ता के निवासी थे।
स्वामी विवकानंद का जीवन परिचय ~ Biography of swami Vivekananda in Hindi
Swami Vivekananda Biography – जन्म व बचपन
स्वामी विवेकनन्द जी का जन्म 1863, 12 जनवरी को कोलकाता में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती भुवनेश्वरी देवी था। इनकी माता धार्मिक विचारों वाली महिला थी उनका अत्यधिक समय शिव भक्ति पूजा आराधना में ही व्यतीत होता था। इनके पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त था और उन्हें पाश्चात्य सभ्यता में बहुत अधिक विश्वास था साथ ही कलकत्ता के हाईकोर्ट में एक प्रसिद्ध वकील भी थे। स्वामी जी अपनी माता से हमेशा रामायण, पुराण और महाभारत की कथाएं सुना करते थे।
Swami Vivekananda Education- शिक्षा
स्वामी विवेकानंद जी के पिता जी की इच्छा थी कि उनका पुत्र पाश्चात्य सभ्यता (वेस्टर्न कल्चर) सीखे, इसके लिए वे विवेकानंद जी को बचपन से ही अंग्रेजी पढ़ाकर उन्हें पाश्चात्य सभ्यता अथवा पश्चिमी संस्कृति सीखना चाहते थे।
किन्तु स्वामी विवेकानंद जी (स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय) को ईश्वर को पाने की प्रबल इच्छा थी क्योंकि बचपन से ही उनका आध्यात्मिकता के प्रति अधिक झुकाव था। जिस कारण उनका मन पश्चात सभ्यता सीखने में मन नहीं लगता था। वैसे तो स्वामी विवेकानंद जी बचपन से ही तेज बुद्धि के बालक थे और अन्य साधारण बालको की तुलना में वे अद्वितीय थे। लेकिन आध्यात्मिक रुचि और परमात्मा को पाने की लालसा के कारण उनका मन कहीं और नहीं लगता था।
इसके लिए वे प्रारम्भ में ब्रह्म समाज को भी स्वीकार किया परन्तु यहां भी उनका मन व चित्त स्थिर न था और उन्हें असंतोष प्राप्त हुआ। स्वामी जी का मन था कि वे वेदांत और योग को पश्चिमी संस्कृति में प्रचलित करने में अपना योगदान दे। ऐसे ही कुछ समय बिता और एक दिन स्वामी विवेकानंद जी के पिता विश्वनाथ दत्त जी की मृत्यु 1884 में हो गई। पिता के मृत्यु के पश्चात् घर का सारा भार इनके उपर आ गया।
पिता जी के मृत्यु के समय घर की स्थिति बहुत अधिक खराब थी और उनका पूरा परिवार आर्थिक तंगी झेल रहा था इसके बावजूद नरेंद्रनाथ दत्त अतिथि की सेवा करने में आगे रहते थे। स्वयं भूखे रह कर अथिति को भोजन कराते और सोने के लिए खुद का बिस्तर दे कर स्वयं बाहर सो जाते।
ऐसे ही दिन बीत रहा था और स्वामी विवेकानंद जी को एक दिन रामकृष्ण परमहंस के बारे में ज्ञात हुआ लोग उनकी बहुत अधिक प्रशंसा कर रहे थे। ऐसे ही एक दिन नरेंद्रनाथ के मन में कुछ सवाल उठे और वे उसका जवाब जानने हेतु रामकृष्ण परमहंस जी के पास जा पहुंचे।
स्वामी विवेकानंद जी का शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धांत
- शिक्षा से बालक का शारीरिक मानसिक और आत्मिक विकास हो सके।
- शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक में अच्छे चरित्र का निर्माण हो, मन व बुद्धि का विकास हो, व्यक्ति आत्मनिर्भर बने।
- शिक्षा में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।
- धार्मिक शिक्षा पुस्तकों के माध्यम से नहीं बल्कि अच्छे संस्कार के द्वारा दी जानी चाहिए।
- शिक्षा गुरु के द्वारा है प्राप्त होनी चाहिए वो भी गुरु गृह में।
- शिक्षक और शिष्य का संबंध निकटतम का होना चाहिए।
- देश की आर्थिक स्थिति के लिए टेक्निकल एजुकेशन की व्यवस्था होनी चाहिए।
- मानवीय शिक्षा और राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू होनी चाहिए।